भारत का सबसे ऊंचा हर्बल पार्क उत्तराखंड में खोला गया है। इस हर्बल पार्क का मुख्य उद्देश्य विभिन्न औषधियों और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण अल्पाइन प्रजाति का संरक्षण करना है।
हर्बल पार्क के बारे में जानकारी:-
यह पार्क 11,000 फीट की ऊंचाई पर उत्तराखंड के चमोली जिला के माणा गांव में स्थित है। माणा गांव बद्रीनाथ के पास स्थित चीन सीमा से लगे अंतिम भारतीय गांव है। इस पार्क का उद्घाटन माणा वन पंचायत के सरपंच पितांबर मोरपा ने किया। 3 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला इस पार्क का विकास उत्तराखंड सरकार के वन विभाग के अनुसंधान विभाग ने CAMPA – compensatory afforestation management and planning authority (क्षति पूरक वनीकरण कोष अधिनियम) योजना के तहत किया गया है। CAMPA योजना के तहत भारत सरकार हरियाली में अग्रणी या प्रोत्साहन देने वाले राज्य को धनराशि देती है।
इस पार्क की विशेषताऐं :-
◆ यह पार्क औषधि एवं अल्पाइन प्रजाति के संरक्षण के साथ-साथ इन प्रजातियों की प्रसार एवं उनकी परिस्थितिकी पर अध्ययन के सुविधा भी प्रदान करता है।
◆ यहां पर उच्च अल्पाइन क्षेत्रों में पाए जाने वाले हर्बल पौधे के लगभग 40 प्रजाति को संरक्षित किया गया। इनमें से कई प्रजाति IUCN (International union of conservation of mature) की Red list में है।
साथ ही साथ राज्य जैव विविधता द्वारा भी संकटपन्न घोषित किया गया।
◆ हिमालय के क्षेत्र के औषधियों के संरक्षण करना अति महत्वपूर्ण है! क्योंकि इससे बहुत लाभ प्राप्त होता है। औषधियों द्वारा कई बीमारियों की दवाइयां बनाई जाती है तथा इनसे कई पौष्टिक तत्व भी पाया जाता है।
साथ ही साथ यह औषधि कई बीमारियों के इलाज में सफलतापूर्वक काम करता है।
इस पार्क को 4 भागों में बाटा गया।
• पहले भाग में भगवान बद्री नाथ से जुड़ी वृक्ष प्रजाति पाई जाती है! जैसे- बद्री तुलसी ,बद्री बैर बद्री वृक्ष तथा भोजपत्र आदि पाया जाता है।
• दूसरे भाग में हिमालय पर पाए जाने वाला अष्ट वर्ग समूह के औषधि पाई जाती है। जिनमें रिद्धि, वृद्धि, ऋषभक, काकोली, क्षीर काकोली, मैदा और महारैला है। इनका प्रयोग च्यवनपरास में किया जाता है। पहले के चारों औषधि लिली प्रजाति के तथा बाद के चार आर्किड प्रजाति के है। काकोली , क्षीर काकोली और ऋषभक बेहद दुर्लभ औषधि है।
• तीसरे भाग में सोसू्रिया प्रजाति से संबंधित जड़ी बूटी पाया जाता है। जैसे- ब्रह्म कमल (जोकि उत्तराखंड का राज्य फूल है), फेम कमल नीलकमल और कुट पाया जाता है।
• चौथे भाग में मिश्रित अल्पाइन प्रजाति पाए जाते हैं। जिनमें अतीश, मीठापीश बंकाकठे और चोरु है। यहां पर थुनेर के पेड़ जिस की छाल से कैंसररोधी दवा बनती है! तानसेन और मेपाल के पेड़ भी पाया जाता है।
औषधियां एवं संकटग्रस्त पौधों प्रजाति के संरक्षण के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा उठाया गया अति महत्वपूर्ण कदम है। औषधियां प्राचीन काल से ही मानव के हित में उपयोगी है और आगे भी इसके लाभ को नाकारा नहीं जा सकता है। राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी इस क्षेत्र में और भी कदम उठाने चाहिए।