तालिबान क्या है?|Taliban Kya hai |What is Taliban in Hindi|अफगानिस्तान में तालिबान शासन
न्यूज़ में क्यों है?
जैसा कि हमें पता है अभी के समय में अफगानिस्तान की राजधानी “काबुल” के साथ-साथ लगभग पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है।
तालिबान एक आतंकी संगठन है इसका अफगानिस्तान में दोबारा कब्जा वैश्विक राजनीतिक में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
तालिबान का जन्म कैसे हुआ?
तालिबान का जन्म कैसे हुआ यह जानने से पहले हमें अफगानिस्तान का कुछ इतिहास जाना पड़ेगा। अफगानिस्तान मुलत: एक पहाड़ी क्षेत्र है,यहां रहने वाले लोग ज्यादातर कबीले है। इसकी शुरुआत हम ‘अहमद शाह अब्दाली’ के साथ करते हैं। अहमद शाह के शासनकाल में अफगानिस्तान में काफी स्थिरता थी।
उसके बाद अंग्रेजों का शासन और 3 अंग्रेज अफगान युद्ध हुआ अंततः अफगान को ही विजय मिली और वहां पर राजतंत्र का आरंभ हो गया। जहीर शाह 1933 से 1974 तक शासन किया। 1973 में उसका प्रधानमंत्री दाऊद खान ने PDPA की सहायता से तख्तापलट कर दिया।
पीडीपीए एक कम्युनिस्ट पार्टी था जोकि रूस के कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभाव में था। उस समय अमेरिका और सोवियत संघ का शीत युद्ध चल रहा था। इसमें दोनों देश विश्व पर अपना प्रभाव करना चाहते थे।
इसी दौरान सोवियत संघ ने अपना प्रभाव के लिए अफगानिस्तान में अपने सैनिक भेज दिए सोवियत संघ के सेना के विरोध में अफगानिस्तान में लड़ाके तैयार होने लगे! इस लड़के को पैसा सऊदी अरब और अमेरिका देते थे ताकि यह सोवियत संघ के खिलाफ लड़ सके।
1987 से 1992 तक मोहम्मद नजीबुल्लाह का शासन था।
इसी बीच सोवियत संघ अपनी हार देखते हुए अपने सैनिकों को 1992 तक वापस बुला लिया। 1992 से 1996 तक अफगानिस्तान में विभिन्न गुटों को लेकर आपसी संघर्ष हुआ तथा गृह युद्ध चला। इसी बीच अफगान मुजाहिदीन के अहमद शाह महमूद ने काबुल पर कब्जा कर लिया लेकिन अस्थिरता का माहौल बना ही रहा।1994 में अफगान मुजाहिदीन का अंग तालिबान उभरा।
तालिबान शब्द ‘तालिब’ से निकला यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ- “विद्यार्थी” होता है तालिबान मुलत: विद्यार्थियों का ही समूह है। जिसका लीडर मुल्लाह उमर था। यह तालिबान काफी तेजी से उभरा तथा बेहद मजबूती से फैलने लगा ! यह तालिबान अफगानिस्तान में सरिया का कानून लागू करना चाहता था!
इसने पश्तून के एरिया में सरिया कानून लागू करने लगा। दक्षिण पश्चिम में इसका प्रभाव तेजी से बढा 1995 में हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया देखते ही देखते 1996 में तालिबान काबुल पर कब्जा कर लीया।
1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन रहा। मुल्लाह उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था।
आरंभ में तालिबान को वहां के लोगों ने पसंद किया, उन्हें उम्मीद था
कि यह मुजाहिदीन के ज्यातयि को बाहर निकालेगा।
तालिबान ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया तथा सड़कों का निर्माण करवाया एवं कारोबारी ढांचा तैयार करने लगा जिससे वह बेहद पसंद होने लगा।
अफगानिस्तान में तालिबान शासन से कैसे हटा ?
आरंभ में तालिबान लोगों की उम्मीदों पर खरा था। परंतु कुछ ही समय बाद उसने अनेक तरह के नियम कानून लागू करने लगा जैसे- सजा देने के बेहद अजीबोगरीब तरीका ,औरतों जुल्म करना, नशा का कारोबार करना ,पुरुषों को दाढ़ी तथा महिला का बुर्का पहनना अनिवार्य करना ,महिलाओं को शिक्षा से दूर रखना ,महिला को अकेले कही जाने से मना करना ,सरेआम सजा देना संगीत ,गान ,बाजन पर रोक लगाना।
इसके साथ ही अफगानिस्तान विश्व के लिए खतरा बन गया इसका संबंध अनेक आतंकवादी समूह से हो गया और यह अनेक आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने लगा जैसे- अमेरिका में हमले में साथ देना, भारत का विमान हाईजैक में साथ देना आदि।
अमेरिका में हमले होने के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से अल कायदा एवं अन्य आतंकियों की सफाया के लिए अफगानिस्तान आ गया (मतलब अमेरिकी फौज को भेजा) और अफगानिस्तान से तालिबानी शासन को धीरे-धीरे खत्म करने लगा। तालिबान शासन बड़े शहरों एवं मुख्य शहरों से समाप्त हो गया परंतु छोटे गांवों एवं कस्बों में बना रहा।
अमेरिका यहां पर चुनाव करवाया जिसने 2004 में तथा 2009 में हमीद करजई राष्ट्रपति बने तथा 2014 एवं 2019 के चुनाव में अशरफ गनी राष्ट्रपति बने।
तालिबान का वापसी से भारत पर प्रभाव-
तालिबान का अमेरिका से दोहा में फरवरी 2020 में समझौता होने के बाद अमेरिका धीरे धीरे अपने सैनिकों को वापस बुलाने लगा। अमेरिका का सैनिक वापस जाने के साथ ही तालिबान अपना प्रभाव बढ़ाने लगा और धीरे धीरे लगभग पूरे अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बना लिया तथा 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर भी कब्जा कर लिया।
अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने से भारत पर इसका सीधा प्रभाव पड़ सकता है।
भारत हमेशा से लोकतंत्र का समर्थक रहा और अफगानिस्तान में वहां के लोगों की भलाई के लिए डैम, रोड, संसद, भवन, पुस्तकालय आदि का निर्माण करवाया जिसका कुल बजट 3 बिलियन डॉलर है।
अगर तालिबान अपना पुराना रवैया रखा तो भारत में आतंकी गतिविधि बढ़ने के आसार अधिक है। भारत अफगानिस्तान का व्यापार एवं राजनीतिक संबंध खत्म हो जाएगा तथा भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान एवं चीन इसका लाभ उठा सकते हैं।
भारत का अफगानिस्तान में बनाए गए संरचना का नाश हो सकता है। परंतु अभी तक तालिबान ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया है जिससे लगता हो कि वह भारत से दुश्मनी चाहता है।
तालिबान शासन और वैश्विक प्रतिक्रिया-
तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा, उनकी आजादी ,सभी देशों के साथ व्यापार एवं राजनीतिक संबंध ,नशा के कारोबार पर रोक लगाने की बात कही है। इसके साथ ही शासन व्यवस्था शरिया कानून से चलाने की बात कही है।
वर्तमान में अफगानिस्तान में तालिबान का शासन होने से विश्व का सभी देशो का अपना अलग-अलग प्रतिक्रिया है।
इसमें पाकिस्तान, चाइना, ईरान एवं कुछ मुस्लिम देश इसका समर्थन कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ़ ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस जैसे देश इसका खुला विरोध कर रहे है।
रशिया एवं अमेरिका का मिलाजुला प्रतिक्रिया रहा तथा भारत का इस पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं रहा। UN अफगानिस्तान में मानवाधिकार हनन ना होने का सख्त निर्देश दिया है।
हम उम्मीद करते हैं कि अफगानिस्तान में जल्द से जल्द शांति के हालात हो तथा वहां के लोगों को सुरक्षा मिले।
बहुत ही शानदार पहल शिक्षा से सम्बंधित बहुत ही अच्छा है हिंदी रेडियो की साइट ,,,