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Surrogacy Kya Hota Hai |सेरोगेसी क्या है|सेरोगेसी के फायदे और नुकसान क्या है

सेरोगेसी वरदान है या अभिशाप ?सेरोगेसी क्या है, सेरोगेट माँ (मदर) क्या होती है ? सेरोगेसी की जरूरत कब ? सेरोगेसी के फायदे और नुकसान क्या है? सेरोगेसी के लिए भारत में कानून ?

नमस्कार दोस्तों आज हम एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा सेरोगेसी की जानकारी प्राप्त करेंगे।
आज से करीब 6 – 7 साल पहले सरोगेसी शब्द का उतना प्रचलन नहीं था या फिर सुनने में अजीब लगता था, परंतु आज के समय में इसका प्रचलन काफी बढ़ गया है।

सेरोगेसी क्या है?

सेरोगेसी या स्थानीय भाषा में कहें तो ‘किराए की कोख’ एक चिकित्सकीय प्रणाली है जिसके द्वारा निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। मतलब किसी दो जोड़े को या अकेले व्यक्ति को किसी कारणवश संतान की प्राप्ति नहीं हो पा रही है, तो वह किसी अन्य महिला की सहायता से संतान की प्राप्ति कर सकता है।

इसे विस्तार से समझने के लिए पहले इसके प्रकार को समझते हैं।

सरोगेसी दो प्रकार का होता है,

  1. ट्रेडिशनल सेरोगेसी
    इसमें कोई पुरुष किसी अन्य महिला की सहायता से बिना उससे शारीरिक संबंध बनाए हुए संतान की प्राप्ति करता है मतलब पुरुष का शुक्राणु (Sperm) को अन्य महिला के अंडाणु (Egg) से परखनली में निषेचन (Fertilization ) करवा कर अन्य महिला की गर्भाशय में आरोपित किया जाता है, इसमें संतान अनुवांशिक रूप से अपने पिता से संबंधित होता है।

उदाहरण स्वरूप – करण जौहर और तुषार कपूर अविवाहित होते हुए भी इसी प्रक्रिया के तहत संतान प्राप्ति किया।

  1. जेस्टेशनल सेरोगेसी

इसमें कोई विवाहित जोड़ा किसी चिकित्सकीय या अन्य कारणों से संतान प्राप्ति करने में असमर्थ है तो इस प्रक्रिया के तहत संतान प्राप्ति करते हैं मतलब इसमें स्त्री पुरुष के अंडाणु और शुक्राणु का परखनली में निषेचन करवा कर किसी अन्य महिला के गर्भाशय (Uterus) में आरोपित किया जाता है।

इसका उदाहरण शाहरुख खान का तीसरा बच्चा अबराम है।

संतान प्राप्ति की इस प्रक्रिया को सेरोगेसी तथा संतान प्राप्ति में भाग लेने वाली अन्य महिला को सरोगेट मदर कहा जाता है।

सरोगेसी क्यों करवाया जाता?

जब कोई जोड़ा बांझपन से पीड़ित होता है।

कुछ माता ऐसी होती है जो बच्चे को जन्म देने में सक्षम नहीं होती है, उनके गर्भाशय में किसी प्रकार की परेशानी होती है या फिर अपने गर्भ में उचित समय तक भुर्ण (Embryo) को नहीं रख पाती है या उनके गर्भ से बार-बार भ्रूण का नष्ट हो जाता है।

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अनुवांशिक रोग या अन्य किसी तरह के रोग से पीड़ित होते हैं और वह चाहते हैं कि इसका प्रभाव उसके आने वाले संतान पर ना पड़े तो इस प्रक्रिया की मदद लेते हैं।

इन सबके के लिए सेरोगेसी की प्रणाली एक वरदान की तरह है परंतु इन सबके के अलावा कई और तरह के भी लोग होते हैं जो इस प्रक्रिया को शौक के कारण अपनी सुंदरता या शारीरिक बनावट में कोई कमी ना हो इसके लिए, इसके अलावा अकेले अभिभावक बनने की इच्छा से इस प्रक्रिया को अपनाते हैं।

इस सरोगेसी की प्रक्रिया से क्या फायदा होता है ?

इस प्रक्रिया का यह फायदा है की इससे संतान प्राप्त करने में और समर्थ लोगों को भी संतान का सुख प्राप्त होता है।

इसके अलावा सेरोगेट बनने वाली मां को भी आमदनी हो जाती है।

इस प्रक्रिया में कई सारे हॉस्पिटल एवं फर्टिलाइजेशन केंद्र की आवश्यकता होती है जिससे रोजगार सृजित होता है।

इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें

सबसे ज्यादा सरोगेसी की प्रक्रिया भारत में करवाई जाती है, एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व का 60% सरोगेसी भारत में करवाई जाती है तथा 2015 में रोक लगने से पूर्व यहां पर होने वाली सेरोगेसी में से 80% विदेशी लोगों के लिए होता था।

जिसका मुख्य कारण गरीबी के कारण लोगों का सरोगेसी के लिए कम पैसे में तैयार हो जाना, सेरोगेसी से जुड़े नियमों कानूनों की जानकारी का अभाव होना,
इस प्रक्रिया के लिए लचीले कानून व्यवस्था का होना, इसके साथ ही भारत में सरोगेसी की प्रक्रिया के लिए सस्ती एवं उत्तम चिकित्सकीय सुविधा का उपलब्ध होना।

भारत में सेरोगेसी की प्रक्रिया में होने वाला खर्च अन्य देशों की तुलना में काफी कम है जो कि 6 से 7 लाख रुपए है।

इस प्रक्रिया के तहत जन्म लेने वाले बच्चे कानूनी रूप से अपने अनुवांशिक माता पिता के ही होंगे।

भारत में सरोगेसी की प्रकार ट्रेडिशनल को गैर कानूनी घोषित किया गया, इसके अलावा इस प्रक्रिया के व्यवसायिक रूप को भी बंद किया गया।

इस प्रक्रिया से होने वाली दुष्प्रभाव :-

इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है की कई बार सरोगेट मदर के द्वारा जन्म लेने वाले बच्चे विकलांग होने या किसी अन्य कारण से उनके माता-पिता अपनाने से मना कर देते थे जिससे की एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती थी।

कई बार ऐसा भी होता था जन्म देने वाली सेरोगेट मदर भावनाओं के कारण या किसी अन्य कारण से उसे उसके वास्तविक माता पिता को देने से मना कर देती थी।

इसके अलावा इस प्रक्रिया को एक व्यवसाय या आमदनी का जरिया के रूप में किया जाने लगा।

कई बार महिला के घरवाले उसे जबरदस्ती सेरोगेट मदर बनने के लिए राजी करते थे, बदले में पैसा लेते थे, इस तरह से उस महिला का शोषण किया जाता है।

इस प्रक्रिया से सेरोगेट बनने वाली मां के ऊपर भी जान का खतरा बना रहता है।

बच्चों की खरीद बिक्री एवं वेश्यावृत्ति जैसे कामों के लिए भी इस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है।

लोग इस प्रक्रिया को एक शौक की तरह और अपने शारीरिक बनावट को बनाए रखने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं, इससे मानवी नैतिक मूल्य का अपमान होता है।

इस प्रक्रिया में बीच के लोग जैसे डॉक्टर वगैरह काफी पैसे कमाते हैं और सेरोगेट बनने वाली औरत को बहुत ही कम पैसे दिये जाता है।

इसके अलावा कम खर्च एवं नियमों की लचीलापन के कारण यह विदेशी लोगों की पसंदीदा जगह बन गया, जिससे एक तरह से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

भारत में इस पर बने कानून :-

भारत में 2002 में इस पर कानून लाया गया जिसे 2005 में मान्यता प्राप्त हुआ तथा इसे समय समय पर संशोधन भी किया गया।

इस पर 2016, 2019 तथा 2020 में बिल पास कर संशोधित कर इस कानून को मजबूत किया गया तथा राज्य एवं केंद्र स्तर पर सेरोगेसी बोर्ड की स्थापना नियमों की देखरेख के लिए किया गया।

भारत में सेरोगेट के व्यवसायिक रूप को प्रतिबंधित किया गया और विदेश से आने वाले लोगों के लिए यह सरोगेसी की प्रक्रिया की मनाही है।

सरोगेसी कब हो सकती है इसके नियम कुछ इस प्रकार है-

जब यह सिद्ध हो जाए कि दोनों स्त्री पुरुष बांझपन से पीड़ित हो, उनके विवाह के कम से कम 5 साल हो चुके हो, वह किसी बीमारी या अन्य कारण से प्रमाणिक रूप से बच्चे को जन्म देने में असमर्थ हो।

सरोगेसी प्रक्रिया सरोगेट मदर के द्वारा परोपकार के रूप में किया जा रहा हो ना कि पैसे के लोभ के कारण, इसमें बच्चों की लिंग जांच की मनाही है तथा यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस प्रक्रिया से जन्म लेने वाले बच्चे को खरीद बिक्री , वेश्यावृत्ति या किसी अन्य प्रकार के गलत कामों के लिए उपयोग ना किया जा सके।

जन्म लेने वाले बच्चे को किसी भी हालत में उनके माता-पिता को अपनाना होगा तथा उस पर कानूनी अधिकार उसके माता-पिता का ही होगा।

इसके साथ ही सेरोगेट बनने वाली औरत के लिए कुछ नियम इस प्रकार है-

सेरोगेट मदर कोई भी इच्छुक महिला बन सकती है।

Note :- 2019 के बिल में केवल करीबी रिश्तेदार ही हो सकती थी।

उस महिला का कम से कम एक बच्चा हो उसकी उम्र 25 से 35 साल के बीच हो, इसके पहले वह कभी सरोगेट मदर ना बनी हो, सरोगेसी हेतु आवश्यक चिकित्सकीय प्रमाण पत्र के साथ-साथ उसके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य का प्रमाण पत्र भी होना आवश्यक है।

वह महिला जन्म देने वाले बच्चे को भावनात्मक या किसी भी अन्य रूप से ना अपनाने के लिए राजी हो तथा सरोगेट महिला पर गलत प्रभाव ना पड़े इसके लिए बीमा की भी सुविधा होनी चाहिए।

यह सारी प्रक्रिया किसी प्रमाणिक एवं पंजीकृत अस्पताल में ही किया जाना चाहिए।

विश्व की पहली सरोगेट बच्चा का नाम BABY – M है, जो कि 1985 से 86 के बीच अमेरिका में जन्म लिया।

भारत के अलावा कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, डेनमार्क, ने जेस्टेशनल सेरोगेट को लागू किया।
फ्रांस, जर्मनी, इटली स्पेन, पुर्तगाल में इसे पूर्ण रूप से मनाही है।

रूस, यूक्रेन, आर्मेनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान में दोनों प्रक्रिया की छूट है।

अमेरिका के कुछ राज्य में इसकी मान्यता तथा कुछ राज्य में मान्यता नहीं है।

अगर हम विज्ञान के इस उपलब्धि को अच्छे कामों के लिए उपयोग करें तो या वरदान साबित होगा नहीं तो इसे अभिशाप बनने में भी देर नहीं लगेगी।

हम उम्मीद करते हैं कि जानकारी आपको पसंद आई होगी।

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