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One Nation One Police system| “एक राष्ट्र एक पुलिस” व्यवस्था क्या है?

चर्चा में क्यों है ?

भारत में एक राष्ट्र एक राशन ,एक राष्ट्र एक चुनाव, एक राष्ट्र एक रजिस्ट्री ,एक राष्ट्र एक गैस ग्रिड की तरह एक राष्ट्र एक पुलिस की जरूरत को लेकर चर्चा हो रही है।

इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है देश में विभिन्न तरह के सुविधा तथा नेटवर्क को एकीकृत करने के लिए यह आवश्यक है। पुराने समय से चले आ रहे हैं पुलिस नियमों को आधुनिकरण करना तथा पुलिस तंत्र में मौजूद भ्रष्टाचार एवं एकीकृत सूचना प्रणाली की कमी, संसाधनों के अभाव को को दूर करने के लिए यह आवश्यक है।

पुलिस तंत्र के बारे में जानकारी:-

मध्यकाल में पुलिस का काम जागीरदार तथा जमींदार द्वारा किया जाता था। अंग्रेजों के समय इसमें काफी सुधार किया गया। 1861 में Police Act लाया गया। इसमें दो प्रमुख बातें थी- पहली सेना और पुलिस को अलग करना तथा दूसरी वजह जिला अध्यक्ष को कानून व्यवस्था बहाल करने में मदद करना।

1862 में (Indian penal code)आया तथा 1872 में Indian evidence Act ,1917 में Indian police service आया इसके आधार पर उच्च पदों पर बहाली प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से होने लगी। यह काम आज के समय में राज्य सरकार द्वारा सीधी भर्ती तथा यूपीएससी के माध्यम से होती है।

1947 में हमने यही व्यवस्था को ही अपनाया और आज भी भारत के अधिकांश क्षेत्र में इसी नियमों के आधार पर कानून व्यवस्था लागू है।

इसके तहत राज्य के पुलिस प्रमुख DGP (Director general of police)होते हैं।
राज्य को कई जोनों में बांटा जाता है। जिसका प्रमुख IG (Inspector general of police) होता है तथा Zone को कई रेंजर्स तथा रेंजर्स को कई District में बांटा जाता है।डिस्ट्रिक्ट का प्रमुख SP होता है।

Police district:-

इसकी घोषणा राज्य सरकार करती है।
यह पुलिस प्रशासन के सबसे महत्वपूर्ण निरीक्षण आत्मक तथा कार्यात्मक इकाई है।

पुलिस स्टेशन:-

पुलिस के कामकाज का बुनियादी इकाई होता है! इसका प्रमुख इंस्पेक्टर या सब इंस्पेक्टर होता है।
इसका काम अपराध दर्ज करना ,जांच करना ,स्थानीय पेट्रोलिंग, कानून व्यवस्था से जुड़ी हड़ताल जैसी परिस्थितियों को नियंत्रित करना, खुफिया जानकारी जुटाना तथा उसके अंदर आने वाले क्षेत्रों की सुरक्षा करना है।

पुलिस प्रशासन को मुख्यता 2 भाग सिविल पुलिस तथा आर्म्ड पुलिस में बाटा गया।
सिविल पुलिस का काम कानून व्यवस्था को बहाल करना एवं अपराधों की जांच से जुड़े काम करना तथा
Armed पुलिस का काम दंगे जैसी स्थिति में अतिरिक्त सहायता के लिए होता है।

संख्या के आधार पर पुलिस प्रशासन में 86%constable,13% sub ordinate rank(inspector to ASI) तथा 1% (DGP to DSP) अधिकारी होते हैं।

पुलिस प्रशासन में सुधार हेतु अब तक की गठित समितियां:-

ऐसा नहीं है की आजादी के बाद से अब तक इस पर ध्यान नहीं है इसमें सुधार के लिए कई तरह के समितियों का गठन किया गया है।

जिसमें राष्ट्रीय पुलिस समिति 1981है, इसके तहत 1973 की अपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधन किया गया।

1998 में Riberio commission, 2000 में Padmanabhai commision,
2005 में sakai sarabaji, 2006 में प्रकाश सिंह बनाम भारत भारत संघ 2007 में 2nd ARC 2010 में J Thomas commission तथा 2015 में Police Art draffting आया।

2006 के प्रकाश सिंह के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 7निर्देश जारी किये थे। जिनमें State Security commission का गठन करना, डीजीपी का 2 साल का कार्यकाल निश्चित करना,
ऑपरेशन में संलग्न आईपीएस तथा एसएचओ को 2 साल का कार्यकाल fixed करना ,Investigation तथा law and order इकाई को अलग करना ,Police establishment board का गठन करना (जो की posting, suspens संबंधित मुद्दे पर काम करेगी) ,पुलिस complain authority का गठन करना ताकि लोग पुलिस के कारण उतपन्न हुई कोई समस्या का शिकायत कर सकें तथा National Security commission का गठन करना। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को 13 राज्यों में लागू किया गया परंतु इसका प्रभाव नहीं के बराबर है।

चुनौती :-

• कानून की संस्कृति बहाली, लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठना, पुलिस अपने कुछ कार्यों से तथा व्यवहार से अपना भरोसा खोया है।

• केंद्र तथा राज्य के बीच राजनीतिक मतभेद ,राज्य का राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी होना ,जिस कारण से पुलिस सुधार की आवश्यकता होते हुए भी इस पर ध्यान ना देना।

• केंद्र का संविधान के कारण अपने दायरे में रहना, क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार पुलिस व्यवस्था राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है।

• पुलिस का राजनीतिकरण तथा उसमें व्यापक भ्रष्टाचार, नेताओं द्वारा निष्पक्ष जांच को प्रभावित करना तथा तबादले को हथियार के रूप में उपयोग करना।

• पुलिस के पास आधुनिक हथियार संसाधन तथा वाहनों की कमी होना।

हमारे ब्लॉग के और भी पोस्ट पढें – तालिबान क्या है?,

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