न्यूज में क्यों है ?
अभी हाल में ही IPCC (Inter governental panel on climate change) ने अपना 6th रिपोर्ट दिया। इसमें बताया कि वैश्विक तापमान वर्ष 2100 तक 2°c से अधिक बढ़ने की आशंका है। यह पृथ्वी की जलवायु स्थिति का सबसे बड़ी एवं सबसे सटीक रिपोर्ट देता है।
IPCC के बारे में जानकारी:-
IPCC का गठन 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम(UNEP) एवं विश्व मौसम विज्ञान संगठन(WMO) ने मिलकर पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन के लिए किया।
इसने अपना पहला रिपोर्ट 1990 में दिया। जिसमें इसने विश्व का औसत तापमान 100 years से अब तक 0.3 से 0.6 तक बढ़ने की बात कही थी।
इसी तरह अपना दूसरा रिपोर्ट 1995, 3rd रिपोर्ट 2001,चौथा रिपोर्ट 2007, और पांचवा 2014 में दिया। सभी रिपोर्ट में इसमें वैश्विक तापमान को बढ़ने के बारे में तथा समुद्र स्तर के बढ़ने की बात कही गयी है।
जलवायु में इस खतरनाक परिवर्तन का मुख्य जिम्मेदार इस रिपोर्ट द्वारा मानव गतिविधियों को ठहराया गया है।
IPCC के चौथा रिपोर्ट 2007 को *शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया! इसमें बताया गया कि उनको 1970 से लेकर 2004 तक कार्बन उत्सर्जन 70% बढ़ गया है और atmosphere में कार्बन सांद्रता पिछले 6.5 लाख सालों में सबसे अधिक है।
IPCC की 6th रिपोर्ट:-
आईपीसीसी अपना रिपोर्ट कई स्तर में जारी करता है पहला स्तर The physical science base में पृथ्वी की जलवायु स्थिति की नवीनतम मूल्यांकन, उस में हो रहे परिवर्तन, ग्रह पर इनका प्रभाव एवं जीवन के रूपों के बारे में बताया है।
रिपोर्ट ने यह भी बताया वैश्विक टेंपरेचर 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है pre industrial age से और अनुमान 1.5 °c 2040 में हो जाएगा! जोकि पेरिस सम्मेलन का लक्ष्य 2050 तक था।
वर्ष 2100 तक 2 डिग्री सेल्सियस तापमान रखना, हमारा लक्ष्य बिना त्वरित कार्रवाई के पीछे छूट जाएगा।
रिपोर्ट ने बताया पहली सदी से 19 वी सदी तक वैश्विक तापमान शून्य से 0.4 डिग्री सेल्सियस बढा था! बीसवीं सदी से अब तक 1.09 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है।
वैश्विक तापमान बढ़ने का कारण प्राकृतिक से कहीं ज्यादा मानवी गतिविधियां है! यह रिपोर्ट 60 देशों के वैज्ञानिकों द्वारा 14 हजार अधिक रिसर्च पेपर के आधार पर दिया गया है।
इसका प्रभाव:-
जलवायु में तेजी से परिवर्तन होने से भारी वर्षा , कहीं सूखा ,समुद्री जल में वृद्धि जिससे तटीय शहर एवं Islands को खतरा, ग्लेशियर पिघलने से नदी वाले इलाके में बाढ़ का खतरा एवं भोजन में भी दिक्कत होगी क्योंकि जलवायु परिवर्तन से फसलों का पैटर्न में भी बदलाव होता है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाए बहुत जल्दी जल्दी आने लगती है जैसे- USA, कनाडा में गर्म हवा का चलना,यूरोप, चाइना में भयंकर बाढ़ का आना , साइबेरिया में आग लगना, तुर्की एवं Greece में आपदा का आना आदि।
इस तरह के आपदाएं लगातार एवं हर कुछ दिनों के अंतराल पर आने लगते हैं और यह आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के साथ और तेजी से आने लगेंगे।
भारत पर इसका प्रभाव:-
• मानसून आने की अत्यधिक अनिश्चितता हो जाएगी।
• हिमालय पर ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ आने का खतरा।
• अत्यधिक गर्म हवाओं का चलना तथा नेट जीरो कार्बन एमिशन का दबाव भारत पर पडना जिससे विकास कार्य एवं तकनीकी खर्च की चुनौती का बढ़ जाना इत्यादि।
समाधान :-
इसका उपाय यह है कि समस्या पर तुरंत ही कार्यवाही किया जाए, नेट कार्बन उत्सर्जन पर जल्द से जल्द सहमति के साथ उस पर ज्यादा समय न लेते हुए काम किया जाए।
• दीर्घकालिक रणनीति बनानी चाहिए।
• कोयला के उपयोग में कमी करना चाहिए।
• इलेक्ट्रिक वाहन को अपनाना चाहिए।
• वनों की कटाई को रोकना चाहिए एवं साथ ही अन्य प्राकृतिक संसाधन जल का भी बचाव करना चाहिए और प्लास्टिक के उपयोग को प्रतिबंधित करना चाहिए आदि।