Dr. Baba Saheb Ambedkar कौन थे?
Dr. Baba Saheb Ambedkar: भारत के संविधान निर्माता डाॅ बाबा साहेब अम्बेडकर की आज 129 वीं जयंती हैं। हर साल 14 अप्रैल को डाॅ अम्बेडकर का जन्मदिन दिवस जोरों – शोरों से मनाया जाता हैं। इस दिन को समानता और ज्ञान दिवस के रूप में भी मनाया जाता हैं। डाॅ अम्बेडकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। 20 वीं सदी के महानतम लोगों की सूची में शुमार हैं। डाॅ अम्बेडकर मध्यप्रेदश के इंदौर जिले के एक छोटे से कस्बे महू में 14 अप्रैल 1891 में जन्में थे। डाॅ अम्बेडकर ने सामाजिक बराबरी और समानता के लिए जों काम किये हैं उसे कोई भी दोहरा नहीं सकता। आज भी दलितों, शोषितों व वंचितोें वर्गाे की आवाज बने हुऐ हैं।
आधुनिक इतिहास को जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया हैं, उनमेें डाॅ भीमराव रामजी अंबेड़कर का नाम भी हैं। देश में समता मूलक समाज बनाने के लिए और कानूनी तौर पर लोगों को सक्षम बनाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहें। अम्बेड़कर ने दलितों को अहसास दिलाया की जिस जमीन पर वो रहते हैं, वहां उनका भी हक हैं, जिस आसमान के नीचे सोते हैं, उसमें उनकी भी हिस्सेदारी हैं। यही अम्बेड़कर का सबसे बड़ा कारनामा हैं।

अम्बेड़कर का बचपन बेहद परेशानियों और गरीबी में गुज़रा था। अछुत और महार जाति में जन्म लेने का बोझ उठाये अम्बेड़कर स्कूल की परीक्षा में सफल हुऐ और मुबंई के गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाखिला पाया। वर्ष 1907 में मैट्रिक की परिक्षा पास की इसके बाद बंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और भारत के किसी भी काॅलेज में दाखिला पाने वाले वो पहले व्यक्ति थें, जिसपर अछुत होने का तमगा लगा हुआ था!
Dr. Baba Saheb Ambedkar बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इसी प्रतिभा को देखते हुऐ बड़ौदा के शासक सयाजीराव गायकवाड़ ने अमेरिका में पढ़ने के लिए उन्हें पच्चीस रूपये महीने का वजीफा दिया। वर्ष 1912 में राजनीती विज्ञान और अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1916 में उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। वर्ष 1923 मं डाॅ आॅफ सांइस की डिग्री से नवाजे गये।
Dr. Baba Saheb Ambedkar को वर्ष 1926 में बंबई विधान परिषद के लिए मनोनित किया गया और यही से उनकी संसदीय राजनीती की पाठशाला की शुरूआत हुई। इसी के बाद वह समाज में गैर बराबरी के खिलाफ़ संघर्ष में शामिल हुऐ और छुआछुत के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। वर्ष 1927 में डाॅ अम्बेड़कर ने पेयजल के सार्वजनिक संसाधनों को समाज के सभी वर्गाे के लिए खुलवाने, अछुतों को हिंदु मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलवाने के लिए आंदोलन किया। जिसके फलस्वरूप बिट्रिश सरकार ने दलितों को मंदिरों और पेयजल के सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग करने का अधिकार दिया गया। इस दौरान उन्होंने मुख्य धारा के राजनीतिक दलों की भी खूब आलोचना की थी।
Dr. Baba Saheb Ambedkar ने 8 अगस्त 1930 को शोषित वर्ग के सम्मेलन में भाग लिया और कहा था कि हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा राजनीतिक शक्ति शोषितों की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती हैं। उनका उध्दार समाज में उनका उचित स्थान पाने में निहित हैं। 24 सितम्बर 1932 को गांधी जी के साथ पूना समझौता किया। इसके तहत विधानमंडलों में दलितों के लिए सु-रक्षित स्थान बड़ा दिये गये। देश आजाद होने के बाद डाॅ अम्बेड़कर को कानून मंत्री बना दिया गया। इसके साथ ही 29 अगस्त 1947 को उन्हें स्वतंत्र भारत का संविधान लिखने के लिए संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 2 साल 18 महीनों के कठोर परिश्रम के बाद भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ और 29 नवम्बर 1949 को सौंप दिया।
Dr. Baba Saheb Ambedkar पुरूषों के समान महिलाओं के बराबरी और अधिकारों के पक्षधर थे। इसी वजह से वर्ष 1951 में संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया। इस बिल का विरोध होने पर कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 1956 में समस्त दलित समाज के साथ हिंदु धर्म को त्याग कर बौध्द धर्म अपना लिया। डाॅ अम्बेड़कर ज्ञान के सागर थे, उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान, धर्म, समाजशास्त्र और कानून पर कई किताबे लिखी। उन्होंने दलित समाज से कहा कि शिक्षित बनों, संगठित बनों और संघर्ष करों।
वर्ष 1990 में मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। डाॅ अम्बेड़कर का मानना था कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए पूंजीवाद और जातिवाद का खात्मा बेहद जरूरी हैं। भारतीय समाज के विकास में Dr. Baba Saheb Ambedkar का अहम योगदान रहा हैं रिर्जव बैंक की परिकल्पना उनकी थिसिस प्राब्लम ऑफ रूपी के आधार पर की गई हैं। साथ ही डाॅ अम्बेड़कर बड़े बांधों की तकनीकों के भी जानकार थे। आजाद भारत में उन्होंने दामोदर, हीराकुण्ड और सोन नदियों पर बनी परियोजना में अहम भूमिका निभाई थी। मजूदरों के काम की अवधि को कम करने के लिए 7 वें भारतीय मजदूर सम्मेलन में पैरोकारी की थी। जिसके बाद मजदूरों की काम की अवधि को 14 घंटों से कम कर 8 घंटे कर दिया गया।
Dr. Baba Saheb Ambedkar न सिर्फ समतामूलक समाज के पैरोकार थे, बल्कि धर्मनिरपेक्षता और धर्म की बराबरी के समर्थक भी थे। वो मनु की बताई सामाजिक व्यवस्था का विरोध करते थे। वो दलितों को केवल समानता तक ही सीमित नहीं रखते, बल्कि उनमें चेतना और जाग्रती का संचार भी करते थे। अम्बेड़कर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आदर्श व शिक्षाएं देश की आने वाली पीढ़ियों को लाभान्वित करती रहेंगी।