Cop26 और भारत। COP-26 के महत्वपूर्ण बातें ?
जलवायु परिवर्तन आज के प्रमुख समस्या में से एक समस्या है, इसका प्रभाव वर्तमान समय में उतना ज्यादा नहीं है लेकिन आने वाले समय में इसका प्रभाव बहुत ही भयंकर हो सकता है। इसके प्रभाव एवं रोकथाम के उपाय ले को लेकर तरह-तरह के रिपोर्ट प्रकाशित होते रहते हैं और आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने या रोकने के लिए विश्व के लगभग सभी देश इस पर समय समय पर बैठक करते रहते हैं।
इसी प्रक्रिया के तहत संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन की बैठक हो रही है, यह बैठक और स्कॉटलैंड की राजधानी ग्लास्को में हो रही है
जिसमें भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी पहुंचे हैं और इस बैठक में उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने विचार रखें तथा उन्होंने यह घोषणा किया कि भारत 2070 तक नेट कार्बन जीरो अर्थव्यवस्था वाला देश बनेगा।
COP 26 क्या है ? :-
(What is COP 26)
जलवायु परिवर्तन पर होने वाले इस बैठक को COP ( conference of parties ) के नाम से भी जाना जाता है और यह इसका 26 बैठक है इसीलिए इसे COP 26 कहा जाता है।
यह UNFCCC का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाली अंग है। United nation framework convention on climate change (UNFCCC) की स्थापना 1994 में हुआ, इसका मुख्य काम जलवायु परिवर्तन को कम करने का उपाय करना, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अनुसार तैयारी करना और जलवायु परिवर्तन से संबंधित जागरूकता लोगों के बीच फैलाना।
COP पहली बैठक 1995 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हुआ, COP 25 बैठक स्पेन की राजधानी मेड्रिड में हुआ था तथा इसका अगला बैठक मिस्र में होगा (यानी cop27)।
इस बैठक में जलवायु परिवर्तन को लेकर सभी देशों के बीच गहन विचार-विमर्श चला।
जिसमें कई सारे देश ने अपना विचार रखा इसमें भारत ने अपना विचार रखते हुए यह कहा कि भारत 2070 तक नेट कार्बन जीरो अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा।
अमेरिका सहित कई यूरोपीय देश 2050 तथा चीन ने 2060 तक नेट कार्बन 0 बनने का लक्ष्य रखा ।
ध्यान देने वाली बात यह है कि चीन 30% अमेरिका 14% और भारत 7% तीन सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जक देश है।
IPCC की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर सभी देश अगर ध्यान नहीं दिया, तो 2100 वैश्विक तापमान 2.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा और अगर इस पर ध्यान देकर काम करना आरंभ किया, तो 2.4 डिग्री सेल्सियस तथा वैज्ञानिक नियमों के अनुसार चलें और उस पर कानून बनाएं तो 2 डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होगी।
2015 (COP 21) के हुए पेरिस समझौते में लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस का रखा गया था।
भारत ने विकसित देशों से पूर्व घोषित एक ट्रिलियन डॉलर की धनराशि की मांग ज़ीरो कार्बन अर्थव्यवस्था बनने के लिए विकासशील देशों की सहायता हेतु की , क्योंकि विकसित देश ने पूर्व समय में ऐतिहासिक रूप से कार्बन का उत्सर्जन कर वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी की है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए अपने जीवन शैली में भी बदलाव लाना चाहिए तथा वैश्विक तापमान के बढ़ोतरी को कम करने के लिए अपनी तरफ से पंचामृत सौगात दीया।
पंचामृत सौगात :-
इसमें भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पांच मुख्य बिंदु रखा, जिस पर भारत काम करेगा।
- भारत 2030 तक 500 गिगावॉट गैर जीवाश्म ऊर्जा का उत्पादन करेगा।
- भारत 2030 तक अपनी जरूरत का 50% ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत से प्राप्त करेगा।
- भारत 2030 तक अपने कुल कार्बन उत्सर्जन में एक billion टन की कमी करेगा।
- 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था में कार्बन इंटेंसिटी को 45% तक कम करेगा।
- सबसे महत्वपूर्ण कि भारत 2017 तक नेट कार्बन जीरो अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा।
नेट कार्बन 0 इसका अर्थ यह होता है कि कोई भी देश औद्योगिक इकाई , फैक्ट्री, कारखाने, मोटर वाहन एवं अन्य स्रोतों से जितना कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है उतना ही कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण जंगलों दलदली भूमि, समुद्र एवं अन्य माध्यमों से करें।
नेट कार्बन 0 अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत के समक्ष चुनौती :-
भारत को नेट कार्बन उत्सर्जन बनने के लिए कई तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, जिनमें पैसे की समस्या और तकनीकी समस्या मुख्य समस्या है भारत एक विकासशील देश है और इसके बजट का काफी सारा भाग लोक कल्याण , गरीबी एवं बेरोजगारी जैसे कार्यों पर खर्च होते हैं। परंपरागत स्रोत से ऊर्जा प्राप्ति के बजाय नई तकनीकी व्यवस्था से ऊर्जा प्राप्ति के लिए काफी धन की आवश्यकता होगी जो कि भारत के लिए एक बड़ी समस्या है।
भारत के पास नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति की तकनीक उतनी उन्नत नहीं है।
इसके अलावा भारत की एक और प्रमुख समस्या है, वह है परमाणु ऊर्जा की समस्या।
भारत सिर्फ सौर ऊर्जा , पवन ऊर्जा एवं जल ऊर्जा के माध्यम से 2070 ज़ीरो कार्बन अर्थव्यवस्था वाला देश नहीं बन पाएगा, इसके लिए उसे परमाणु ऊर्जा की भी आवश्यकता पड़ेगी और भारत के पास पर्याप्त परमाणु इंधन ना होने के कारण पर्याप्त परमाणु ऊर्जा का उत्पादन नहीं होता है, इंधन ना होने की प्रमुख वजह देश में यूरेनियम की कमी और भारत का NSG ( Nuclear suppliers group) का सदस्य ना होना है।
भारत द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयास :-
भारत के पास क्षमता है कि वह 2070 तक नेट कार्बन जीरो अर्थव्यवस्था वाले देश बन सकता है, भारत विश्व का चौथा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक देश है।
भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम करके अपने उत्पादन क्षमता को और अधिक बढ़ाना होगा , नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्राइवेट कंपनी को और अधिक ध्यान देना होगा।
हमें दो देश भूटान एवं सुरीनाम से सीख लेना चाहिए, जिन्होंने खुद को नेट कार्बन जीरो वाला देश बना लिया और भूटान ने तो नेगेटिव कार्बन वाला देश बन गया हालांकि यह दोनों एक बहुत ही छोटे देश है और इनकी आबादी बहुत ही कम है फिर भी हम उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं।
नेट कार्बन 0 के क्षेत्र में प्रयास करते हुए भारतीय रेल ने घोषणा की कि वह 2030 तक नेट कार्बन ज़ीरो बन जाएगा जिससे 60 मिलियन टंकी कार्बन उत्सर्जन कम होगा।
भारत सरकार द्वारा एलईडी योजना से 40 मिलियन टंकी कार्बन उत्सर्जन कम हुआ।
पैसे की समस्या का निदान विकसित देशों से मिलने वाली धनराशि से काफी हद तक हो सकता है तथा तकनीकी समस्या के लिए भारत को अन्य देशों से सहायता प्राप्त कर खुद विकसित करने की आवश्यकता होगी।
इसके साथ ही परमाणु इंधन की समस्या के लिए भारत ने एनएसजी की सदस्यता की मांग की है जिसके लिए काफी सारे देशों से सहमति प्रकट की और संभावना है कि जल्द ही भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल सकती है।
परीक्षोपयोगी तथ्य
Cop- 26 सम्मेलन: 2021
स्थान- ग्लास्गो (स्कॉटलैंड)
“भारत 2017 तक हासिल कर लेगा नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य”
भारत की तरफ से संबोधन किया- प्रधानमंत्री मोदी ने
दुनिया में भारत की कार्बन उपस्थिति कम करने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी ने 5 बड़े वादे किए। पीएम मोदी ने इसे दुनिया को ‘पंचामृत’ की सौगात बताया है।
पाँच वादे इस प्रकार हैं (पंचामृत)-
- 2030 तक भारत अपनी नॉन- फॉसिल एनर्जी क्षमता को 500 गीगा वाट तक पहुंचाएगा।
- भारत 2030 तक अपनी 50% ऊर्जा जरूरतें रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) से पूरी करेगा।
- 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन एक बिलियन टन की कमी करेंगे।
- भारत 2030 तक इकॉनमी की कार्बन इंटेंसिटी को 45% से भी कम करेगा।
- वर्ष 2070 तक भारत कार्बन एमिशन में नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।
नेट जीरो- यहां नेट जीरो से आशय अगले 49 वर्षों में भारत प्रदूषण करने वाले सारे ऊर्जा संसाधनों जैसे पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस का उपयोग पूरी तरह से बंद कर देगा और इसकी जगह स्वच्छ रिन्यूएबल (अपारंपरिक स्रोतों से बनने वाली बिजली) ऊर्जा संसाधनों का ही उपयोग करेगा।