भारत का युद्धपोत तुशील। भारत के विभिन्न युद्ध पोत ?
भारतीय सेना अपने देश को दुश्मनों से सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती है, इसके लिए वह लगातार प्रशिक्षण और कौशल विकास करती रहती है। इसके साथ ही सैन्य हथियार मजबूती के लिए समय-समय पर उपयुक्त हथियार को विदेश से खरीदते रहती है या फिर अपने ही देश में निर्माण करती है।
इसी के तहत अपने सैन्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय नौसेना ने युद्धपोत तुशील रूस में लॉन्च किया है। इसे रूस के कलिनिनग्राड के यंतर शिपयार्ड में बनाया गया है।
Note :- कलिनिनग्राड रूस के मुख्य भूमि से दूर रूस का अधिकारिक क्षेत्र है जो कि बाल्टिक सागर के पास पड़ता है।
युद्धपोत तुशील को रूस में भारत के राजदूत डी बाला वेंकटेश वर्मा की उपस्थिति में लॉन्च किया गया।
इसे औपचारिक रूप से तुशील नाम दिया गया, यह नाम भारतीय राजदूत की पत्नी सुश्री दतला विद्या वर्मा द्वारा दिया गया, सुशील एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ रक्षक ढाल होता है।
युद्धपोत ( फ्रिगेट ) तुशील :-
यह युद्धपोत ( Frigate) भारत के तलवार श्रेणी के सातवां युद्धपोत है, इस युद्धपोत को प्रोजेक्ट P11356 के तहत एवं 2016 में भारत और रूस के बीच हुए समझौता के आधार पर बनाया गया।
इस समझौता के अंतर्गत 4 युद्धपोत निर्माण की बात हुई थी, जिनमें 2 युद्धपोत रूस में बनाया जाएगा तथा 2 युद्धपोत को भारत में रूस की सहायता एवं तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से गोवा शिपयार्ड द्वारा बनाया जाएगा ।
फ्रिगेट तुशील को रूस में समुद्री परीक्षण के पश्चात भारत में समुद्री परीक्षण के बाद 2023 तक भारतीय नौसेना में शामिल करने की संभावना है।
रूस में बनाए गए युद्ध पोत का खर्च 950 मिलियन डॉलर तथा भारत में रूस की सहायता से बनाए गए युद्धपोत का खर्चा 500 मिलियन डॉलर है।
इस युद्धपोत को भारतीय नौसेना की जरूरत एवं भारतीय परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए बनाया गया, यह युद्धपोत भारतीय नौसेना के जरूरत को पूरा करने में उपयुक्त एवं सक्षम है।
इस युद्धपोत में स्टेल्थ तकनीक का प्रयोग किया गया ताकि यह दुश्मन के रडार से पकड़ा ना जा सके।
इसमें भारतीय सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत तथा रूस के अत्याधुनिक हथियार एवं सेंसर लगा हुआ है, इसमें सतह से सतह मार करने वाली मिसाइल, सत्ता से हवा में मार करने वाली मिसाइल , सोनार प्रणाली, सतह पर निगरानी करने वाला रडार संचार प्रणाली है।
इस युद्धपोत से गाइडेड मिसाइल लॉन्च किया जा सकता है, यह दुश्मन के पनडु्बी को नष्ट कर सकता है और यह युद्धपोत अपने साथ हेलीकॉप्टर ले जा सकता है।
इस युद्धपोत पर AWS ( Anti submarine warfare ) पनडुब्बी रोधी प्रणाली तथा गण माउंट्स लगा हुआ है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस युद्धपोत से ब्रह्मोस मिसाइल को भी दागा जा सकता है।
भारत की फ्रिगेट ( युद्ध पोत ) :-
भारत में कुल 4 श्रेणी की फ्रिगेट है।
शिवालिक श्रेणी :- इस श्रेणी में कुल तीन फिग्रेट है शिवालिक ,सतपुड़ा और सह्याद्री है, यहभारत की सबसे अच्छी फ्रिगेट है, इसे भारत ने ही बनाया है।
तलवार श्रेणी :- इस श्रेणी में कुल 6 फ्रिगेट है तलवार ,त्रिशूल ,तवर , तेग, तरकश, त्रिकंद और सातवां तुशील जिसका समुद्री परीक्षण चल रहा है। इसे प्रोजेक्ट P11356 के नाम से भी जाना जाता है, इस श्रेणी के frigate को भारत और रूस मिलकर बना रहा है, इसके अंतर्गत फिगेट चार चरण में बनाया जा रहा है, पहले तथा दूसरे चरण के फ्रिगेट को पहले बनाया गया तथा तीसरे चरण के अंतर्गत पहला फ्रिगेट तुशील को बनाया गया तथा एक और बनाया जाएगा और इसके बाद चौथे चरण के फ्रिगेट का निर्माण भारत में किया जाएगा।
ब्रह्मपुत्र श्रेणी :- इसके तहत तीन फ्रिगेट हैं ब्रह्मपुत्र, बेतवा और व्यास इसे भारत के द्वारा ही बनाया गया।
गोदावरी श्रेणी :- इस श्रेणी में फिलहाल एक ही फ्रिगेट गोदावरी है।
इस समझौते के तहत बनाए गए युद्धपोत की राजनीतिक विशेषता :-
इस युद्धपोत के विशेषता के साथ-साथ इस समझौते के भी विशेषता है, इस समझौते से भारत पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने की आशंका के कारण युद्धपोत निर्माण की धनराशि का खर्च भारत द्वारा रूस को भारतीय रुपया में दिया गया, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है की रूस से s-400 खरीदने पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध ना लगाने के बाद इस समझौते पर अमरीका द्वारा प्रतिबंध लगाने की आशंका है।
इस फ्रिगेट में यूक्रेन द्वारा निर्मित इंजन को लगाया गया और रूस तथा यूक्रेन में काफी विवाद है, भारत ने अपनी विदेश नीति एवं राजनीतिज्ञ प्रभाव से यह काम करवाया जोकि इस समझौते की एक प्रमुख विशेषता है।
भारतीय नौसेना अधिकारी का कहना है कि भारत को वर्तमान में 24 फ्रिगेट की आवश्यकता है और भारत के पास अभी वर्तमान में तुशील समेत कुल 14 फ्रिगेट ही है जोकि आवश्यकता से काफी कम है।
भारत सरकार को इस क्षेत्र में ध्यान देते हुए जल्द से जल्द समझौते की तीन और फ्रिगेट बनाया जाए और उपयुक्त संख्या की पूर्ति के लिए भारत में निर्माण तथा समझौता पर भी ध्यान देना चाहिए।