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Agricultural law dispute |कृषि कानून को वापस किया। कृषि कानून वापस क्यों लिया गया ?

सरकार ने मानी किसानों की बात तीन कृषि कानून को वापस किया। क्या थे तीनों कृषि कानून ? कृषि कानून वापस क्यों लिया गया ?

दोस्तों आज का दिन विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए बहुत ही खुशी का दिन है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि भारत सरकार तीन कृषि कानून को वापस लेने का निर्णय किया है।

जिसे वह संसद के शीतकालीन सत्र जो की इसी महीने के अंत में आरंभ होगा उसमें संसदीय प्रक्रिया के तहत वापस लिया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित करते हुए कहा,
कि हम तीनों किसी कानून को वापस ले रहे हैं, सरकार हमेशा से किसानों की कल्याण के लिए काम करती रही है और आगे करती ही रहेगी। लेकिन इतने पवित्र, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों की हित की बात को अपने प्रयासों के बावजूद हम किसानों को समझा नहीं पाए। इस प्रकाश पर्व गुरु नानक देव की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री ने माफी मांगते हुए किसानों को आंदोलन छोड़ कर अपने अपने घर जाने को कहा।

यह कानून कब लागू हुआ ?

इस कानून को जून 2020 में राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी कर लाया गया।

नोट :- जब संसद का सत्र ना चल रहा हो, तो आवश्यक नियम को राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के तहत जारी कर सकते हैं।

जिसे लोकसभा से 17 सितंबर, राज्यसभा से 20 सितंबर तथा राष्ट्रपति से 27 सितंबर 2020 को अनुमति लेकर इसे कानूनी रूप दिया गया।

उसके कुछ ही दिनों के बाद लगातार इस पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, इस कृषि कानून पर पंजाब हरियाणा समेत लगभग पूरे देश के किसानों ने अपने स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया। यहां तक कि यह आंदोलन कभी-कभी हिंसक रूप भी ले लिया, चाहे वह 26 जनवरी की दिल्ली का हिंसा हो या फिर यूपी लखीमपुर की हिंसा, इसमें कई जानें भी गई फिर भी आंदोलन चलती रहा।
इस कृषि कानून के विरोध में पंजाब, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ कि राज्य सरकार ने बिल भी ला दिया, हालांकि यह राज्यपाल की अनुमति ना मिलने के कारण लागू नहीं हो सका।

इसे अनुच्छेद 245 के तहत लोकसभा तथा राज्यसभा से वाद विवाद के बाद राष्ट्रपति की अनुमति से निरस्त कर दिया (Repealed ) जाएगा।

आइए समझते हैं कि यह तीन कृषि कानून क्या है? जिस पर इतना हंगामा वाद-विवाद एवं हिंसा हो रही है।

आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020

नमक, तेल, आलू, चावल, दलहन, तिलहन, प्याज आदि आवश्यक वस्तुएं होते हैं। बड़े-बड़े व्यापारी इसके दाम बढ़ाकर और मुनाफा को कमाने के लिए इसका बहुत मात्रा में जमा कर भंडारण कर लेते हैं, जिससे इन चीजों की बाजार में कमी हो जाती है और इनका दाम बढ़ने लगता है, दाम बढ़ने पर इसे यह बाजार में लाते हैं और अधिक मुनाफा कमाते हैं, इसी को कालाबाजारी कहा जाता है
इसको रोकने के लिए सरकार ने 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम लाया, जिसके अंतर्गत व्यापारी एवं अन्य लोग एक सीमित मात्रा से अधिक कृषि उपज का भंडारण नहीं कर सकते। परंतु आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 के तहत सरकार ने अनाज, दाल , तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आदि को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर निकाल दिया। अब इन सभी का भंडारण का कोई सीमा नहीं होगा, युद्ध और आपदा के समय को छोड़कर।

सरकार का इस पर पक्ष :- इससे किसानों की आय में वृद्घि होगी, किसान अपने पास उपज को जमा कर रख सकते हैं जब दाम अधिक हो, तो इसे बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

किसान पक्ष :- किसान से अधिक भंडारण तो व्यापारी लोग करते हैं, किसान के पास ज्यादा भंडारण करने की क्षमता नहीं होती।
दाम बढ़ने से सरकार भंडारण नियम को समाप्त कर देती है। इससे कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा, ज्यादा भंडारण हो जाने से किसानों को अगले साल कम दाम में ही फसलों को बेचना पड़ेगा ।

कृषि उपज, व्यापार और वाणिज्य अधिनियम 2020

इस कानून के तहत किसान उपज को मंडी के अलावा कहीं और भी बेच सकते है, जिससे उन्हें फसलों का अच्छा दाम मिलेगा।

हालांकि किसान पहले भी मंडी बहुत कम ही जाते थे, 2015 के सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 6% किसान ही मंडी में बेचते हैं।

सरकार निश्चित मूल्य पर किसान से ऊपर खरीदती है जिसे MSP कहते हैं, अगर फसल का मूल्य MSP से अधिक है तो किसान उसे मंडी में बेच सकते हैं और अगर मंडी में मूल्य कम है तो उसे MSP पर बेच सकते हैं।

Minimum support price (MSP) :- न्यूनतम समर्थन मूल्य, इसे CACP ( Commission of Agriculture and cost price ) द्वारा लागू किया जाता है, जो कि Food corporation of india के अंतर्गत काम करता है, इसके तहत सरकार फसल बुवाई के समय ही उसका दाम लागू कर देती है की सरकार इसी दाम पर खरीदा जाएगा।

किसान का पक्ष :- एक देश एक बाजार के तहत मंडी व्यवस्था को खत्म कर देगी और किसान बाजार के अधीन हो जायेंगे,इसके साथ ही MSP को भी खत्म कर देगी इसलिए MSP की गारंटी चाहिए।

सरकार का पक्ष:- मंडी व्यवस्था बनी रहेगी तथा MSP भी बना रहेगा और बिचौलियों पर लगाम लगाया जाएगा ,दो राज्यों के बीच व्यापार बढ़ेगा।

किसी कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020

इसे करार कृषि ( Contract farming ) भी कहते हैं, इसमें चिप्स, बिस्किट जैसी चीजों बनाने वाली कंपनियां सीधे तौर पर किसान या किसानों के समूह से संपर्क करेगी और अपनी जरूरत के फसल को बोने को कहेगी। जिसके लिए किसानों को वह कंपनी उचित दाम का करार करेगी, फसल का उपज हो जाने पर बाहर बाजार में अगर फसल का दाम करार दाम से अधिक हो या कम हो, तो ही किसान को करार दाम में ही कंपनी को बेचना होगा। इसमें किसान को फायदा और नुकसान दोनों होगा।

इसके साथ ही कंपनी में किसान को अच्छे बीज तथा उसके फसल को खेतों से ही उठा लेगी।

सरकार का पक्ष :- पहले से तय कीमत पर फसलों की खरीदारी होगी, किसानों का नुकसान का जोखिम कम होगा और किसानों को फसल के खरीदार की ढूंढने की जरूरत नहीं होगी।

किसान का पक्ष:- निजी कंपनी के आ जाने से कुछ सालों में पहले से चली आ रही मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
शुरू शुरू में निजी कंपनी अच्छी दाम देती है और उसके कुछ सालों के बाद दाम को कम देना शुरू कर देती है, जिससे बाहर कोई विकल्प न होने के किसानों को कम दाम में ही फसल को बेचना पड़ेगा।

अभी भी कुछ क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चल रही है वहां के अनुभव के आधार पर बाजार में दाम कम होने पर कंपनी फसलों की खरीदारी में आनाकानी करने लगती है, फसल को सड़े हुए, कीड़े लगे हुए या काला बताकर उसे खरीदारी कम कर देती है जिससे समस्या उत्पन्न हो जाती है।

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