गुरु ब्रह्मा गुरुविष्णु ,गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रम्ह ,तस्मै श्री गुरुवे नमः
हमारे देश में गुरु को प्राचीन काल से देवताओं के तुल्य माना जाता है। गुरु को ब्रह्मा की तरह निर्माता माना जाता है क्योंकि गुरु ही विद्यार्थी के जीवन में परिवर्तन कर उसे योग्य बनाते हैं। गुरु को विष्णु के समान रक्षक माना जाता है। क्योंकि वह विद्यार्थियों को नकारात्मक प्रभाव से बचाते हैं और प्रगति का मार्ग दिखाते हैं। गुरु को महादेव की तरह विनाशक माना जाता है क्योंकि गुरु विद्यार्थियों के जीवन से अज्ञानता रूपी कष्ट विनाश करते हैं। ऐसे परम ब्रह्म गुरु को उनके चरणों में प्रणाम।
गुरु का अर्थ:-
गु से “अंधकार” रू से “दूर करने वाला” होता है ।
अर्थात गुरु वह होते हैं जो शिष्यों के जीवन से अज्ञानता रुपी अंधकार को दूर करते हैं। यहां अज्ञानता का अर्थ अज्ञान, बुरे आचरण, विश्वास की कमी ,कौशल की कमी आदि है।गुरु का तात्पर्य सिर्फ उनसे नहीं है जो विद्यालयों में शिक्षा देते हैं उनके साथ साथ उन सभी से है जिनसे हमें कुछ न कुछ सीखने को मिलता है ।हमारे जीवन के सबसे पहले एवं बड़े गुरु माता-पिता होते हैं। माता पिता ही हमें जीवन की प्रारंभिक शिक्षा देते हैं।गुरु को शिष्यों के जीवन में देवताओं के तुल्य या उनसे ऊपर का स्थान होता है।
कबीर दास का एक दोहा है।
“गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए”
इसका अर्थ गुरु और गोविंद दोनों साथ में खड़े हैं। किनका चरण स्पर्श पहले किया जाए?
इस स्थिति में गुरु का चरण स्पर्श करना ही श्रेष्ठ होता है। क्योंकि गुरु की कृपा से ही हमें गोविंद के प्राप्ति एवं गोविंद का ज्ञान होता है। गुरु शिष्य का संबंध भारत की संस्कृति का एक अहम एवं पवित्र रिश्ता है। गुरु शब्द का ही परिवर्तित रूप शिक्षक को कहा जाता है।
शिक्षक दिवस का अर्थ –
शि- शिखर तक ले जाने वाले
क्ष- क्षमा की भावना रखने वाले
क-कमजोरी को दूर करने वाले
अर्थात विद्यार्थी की गलती पर क्षमा कर की कमजोरी को दूर कर उसे सफलता की शिखर तक पहुंचाते वाले ही शिक्षक कहलाते हैं। शिक्षक विद्यार्थी का संबंध उस मालि की तरह है जो एक बगीचे में तरह तरह के फूल खिलाते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों का चरित्र का निर्माण करते हैं।उन्हें जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में परेशानियों , कष्टों से लड़ने की शिक्षा देते हैं। शिक्षा का अर्थ सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं होता है। शिक्षा का अर्थ विद्यार्थी के जीवन में सही आचरण, चरित्र का विकास होना, कौशल का विकास होना ,जीवन में अपने आप पर विश्वास करना ,सही गलत का पहचान करना ,विभिन्न परिस्थितियों सामना करने की क्षमता का विकास होना आदि है। जो एक अच्छे शिक्षक विद्यार्थियों को सिखाते हैं।
शिक्षक उस सड़क की तरह है जो खुद स्थिर रहकर विद्यार्थियों को उसके सफलता के मंजिल तक पहुंच जाते हैं। शिक्षक देश में रहने वाले नागरिकों का भविष्य निर्माण कर राष्ट्र निर्माण में भी सहयोग करते हैं। इसीलिए उनके योगदान के सम्मान एवं उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस को भारत के महान अध्यापक , प्रथम उपराष्ट्रपति , द्वितीय राष्ट्रपति एवं भारत रत्न प्राप्त डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस मनाने की प्रक्रिया 1962 से आरंभ हुआ। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 के तिरुताणी ग्राम तमिलनाडु में हुआ । उनके पिता का नाम वीरामास्वामी तथा माता का नाम श्रीमती सीताम्म था। उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ उनके पास सीमित संसाधन थे। फिर भी इन्होंने सिद्ध किया की प्रतिभा संसाधनों के मोहताज नहीं होती है। उनकी प्राथमिक शिक्षा तिरुपति में 1896-1900 तक, उसके बाद वेल्लोर में 1900-1904 तक तथा उसके बाद की शिक्षा मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में हुई। इनकी शादी 14 वर्ष की अवस्था में 10 साल की शिवाकाम देवी से हो गई। इनकी रूचि गणित, मनोविज्ञान, इतिहास के साथ-साथ सबसे अधिक दर्शनशास्त्र में थी।
इनके दर्शनशास्त्र में रुचि को देखकर पढ़ाई के दौरान ही अध्यापक ने उन्हें दूसरे कक्षा में दर्शनशास्त्र को पढ़ाने कहते थे। 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अपना अध्यापन का काम प्रारंभ किया। इसके बाद बनारस, चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली ,मैसूर समेत कई शहरों के विश्वविद्यालय में अध्यापक प्रधानाध्यापक के पद पर काम किया। इन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी दर्शनशास्त्र के शिक्षक के रूप में कुछ समय के लिए काम किया। ये 1952 में देश के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा 1962 में डॉ राजेंद्र प्रसाद के पश्चात दूसरे राष्ट्रपति बने। 1954 में इन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। इनका कहना था। यदि शिक्षा सही से दिया जाए तो समाज से अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है।
शिक्षक के हाथों में छात्र गीली मिट्टी की तरह होते हैं जिसे शिक्षक योग्य आकार देकर अच्छा इंसान बनाते हैं। अच्छे शिक्षक को पता होता है कि छात्रों की प्रतिभा कैसे निकाले।शिक्षक दिवस के अवसर पर ही भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार दिया जाता है।
शिक्षक दिवस के दिन विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है। इसदिन विद्यार्थी शिक्षक को उपहार, कार्ड देते हैं साथ ही केक काटने जैसी कार्यक्रम भी होता है। इस दिन विद्यार्थी शिक्षक के गुणों के बखान स्वरूप भाषण भी देते हैं तथा विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होता है।
आज के तकनीकी युग है शिक्षा तकनीकी साधनों पर आधारित हो गई है।परंतु आज भी शिक्षक का महत्व कम नहीं हुआ है।
इस के संदर्भ में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का कहना है कि-
तकनीक सिर्फ एक उपकरण है बच्चों को प्रेरित करने के लिए शिक्षक महत्वपूर्ण है और अगर आप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं तो इसके लिए अच्छे स्कूल के बजाय अच्छे शिक्षक की तलाश करें।
भारत के अलावा 21 देशों में 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
आज के समय में शिक्षक ज्ञान की बोली लगाते हैं तथा शिक्षक एवं विद्यार्थियों द्वारा कुछ गलत कामों से शिक्षक एवं विद्यार्थी के रिश्तो कहीं ना कहीं कलंकित हो रहे हैं।
इसे देखकर शिक्षक और विद्यार्थी की परंपरा पर भी प्रश्न लग रहे हैं। इसीलिए शिक्षक और विद्यार्थी दोनों का दायित्व बनता है कि इस महान परंपरा को बेहतर ढंग से समझे तथा एक नए समाज की निर्माण में अपना सहयोग करें। गुरु का सम्मान सिर्फ शिक्षक दिवस के दिन ना करके हमेशा उनका सम्मान करना चाहिए। क्योंकि गुरु ही हमें जीवन जीने की सलीके के सिखाते हैं ।
इसके संदर्भ में अलेक्जेंडर का कहना है-
जीवन के लिए मैं अपने माता-पिता का शुक्रगुजार हूं।
रंतु एक अच्छे जीवन के लिए मैं अपने गुरु का शुक्रगुजार हूं।
और अंत में
देते हैं शिक्षा शिक्षक हमारे, नमन चरणों में गुरु तुम्हारे, बिना शिक्षा सुना जीवन है,शिक्षित जीवन सदा नवजीवन है।
शिक्षक दिवस पर कविता हिंदी में
कविता –1
दीपक सा जलता है गुरु
फैलाने ज्ञान का प्रकाश
न भूख उसे किसी दौलत की
न कोई लालच न आस
उसे चाहिए, हमारी उपलब्धियां ,उंचाईयां,
जहां हम जब खड़े होकर
उनकी तरफ देखें पलटकर
तो गौरव से उठ जाए सर उनका
हो जाए सीना चौड़ा
~ प्रीति सोनी
कविता -2
गुरु बिना ज्ञान कहां,
उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां।
गुरु ने दी शिक्षा जहां,
उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया,
उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया।
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया,
दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
अपनी शिक्षा के तेज से,
तुम्हें आभा मंडित कर दिया।
अपने ज्ञान के वेग से,
तुम्हारे उपवन को पुष्पित कर दिया।
जिसने बनाया तुम्हें ईश्वर,
गुरु का करो सदा आदर।
जिसमें स्वयं है परमेश्वर,
उस गुरु को मेरा प्रणाम सादर।
-अंशुमन दुबे