असम का इतिहास काफी जटिल रहा है। यहां पर अनेक तरह के आदिवासी समूह निवास करते हैं। जोकि समय-समय पर अपने पहचान, भाषा, संस्कृति , परंपरा के बचाव एवं अन्य उद्देश्य के लिए अलग राज्य एवं कभी-कभी अलग देश की मांग करते हैं । इसके लिए हिंसा का सहारा लेने में भी पीछे नहीं हटते हैं। इनमें बोडोलैंड विवाद, ULFA विवाद और कार्बी आंगलोंग प्रमुख है। बोडोलैंड विवाद को साल 2020 में केंद्र सरकार के प्रयास से समझौता द्वारा समाप्त कर दिया गया। अभी हाल में ही केंद्र सरकार, असम सरकार और असम के ही पांच प्रमुख उग्रवादी संगठन के बीच समझौता कर कार्वी आंगलोंग विवाद को समाप्त किया गया।
कार्बी आंगलोंग विवाद क्या है ? :-
कार्बी असम का प्रमुख जनजातीय समूह है। जोकि असम के 2 जिले कार्वी आंगलोंग और कार्बी आंगलोंग पश्चिम के मूल निवासी है। यह लोग अपने भाषा ,संस्कृति ,पहचान ,परंपरा, रीति रिवाज के संरक्षण को लेकर अलग राज्य की मांग कर रहे थे। इनका मांग था कि कार्बी आंगलोंग के क्षेत्र में उस क्षेत्र के बाहर से आने वाले लोगों के बस जाने से उनकी संस्कृति पर खतरा हो सकता है। 1946 से ही मध्य असम में स्थित सबसे बड़ा जिला कार्बी आंगलोंग को लेकर अलग राज्य की मांग की बात चल रही थी। 1980 के बाद से अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन हिंसक हो गया और कई उग्रवादी समूह इसको लेकर हिंसा फैलाते थे ।
अब इस समझौता को लेकर सरकार द्वारा इस विवाद को खत्म करने की कोशिश की गई । इस समझौते में शामिल हुए उग्रवादी समूह है –
कार्वी लोंगरि नॉर्थ कछार हिल्स लिबरेशन फ्रंट ( KLNLF ), पीपुल डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्वी लोंगरी (PDCF), यूनाइटेड पीपुल लिबरेशन आर्मी(UPLA), कार्वी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर( KPLT), कुकी लिबरेशन फ्रंट ( KLF)
इस समझौते के महत्वपूर्ण बातें :-
कार्बी आंगलोंग स्वायात परिषद को अधिक से अधिक स्वतंत्रता दी जाए।
Note:- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त (Autonomous) परिषद (Council) का गठन 1951-52 में किया गया। कार्बी आंगलोंग के क्षेत्र में आदिवासी के विकास और संरक्षण के लिए स्वायत्त जिला परिषद का गठन किया गया। इसका गठन संविधान की अनुसूची 6 के अंतर्गत किया गया जिसमें कहा गया है की, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी लोगों की संस्कृति एवं परंपरा के बचाव के लिए है, अगर वह चाहे तो स्वायत्त परिषद की गठन के माध्यम से स्थानीय स्तर पर शासन व्यवस्था अपने तरीके से चला सकते हैं। कार्बी क्षेत्र के विकास के लिए विशेष परियोजना के तहत केंद्र एवं असम सरकार द्वारा 5 सालों में 1000 करोड़ का विशेष पैकेज की घोषणा की गई है। कार्बी लोगों की भाषा, संस्कृति, पहचान ,परंपरा की सुरक्षा का आश्वासन।
प्रमुख उग्रवादी समूह का आत्मसमर्पण। उग्रवादी समूह के समर्पण से उनके लिए पुनर्वास का प्रबंध की व्यवस्था की गयी है। असम सरकार द्वारा कार्बी क्षेत्र से बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के लिए कार्बी कल्याण परिषद की स्थापना। समर्पण कर चुके लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था। जिसके लिए हो सकता है सेना एवं पुलिस में भर्ती के लिए विशेष व्यवस्था। असम सरकार द्वारा राज्य की मांग के विवाद के समय मृत्यु होने वाले लोगों के परिवार को ₹5 लाख की सहायता। समर्पण कर चुके लोगों पर चल रहे छोटे-मोटे केसों को खत्म कर दिया जाएगा एवं बड़े और जघन्य अपराधों के लिए चल रहे केस पर अभी विचार किया जाएगा ।
इस समझौता का महत्व :-
कार्बी आंगलोंग के क्षेत्र में होने वाली हिंसा बंद हो जाएगी।
असम में शांति एवं समृद्धि खुशहाली को बढ़ावा मिलेगा।
हिंसा को छोड़ आत्मसमर्पण करने वाले लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा।
केंद्र सरकार एवं प्रधानमंत्री का लक्ष्य पूर्वोत्तर भारत को उग्रवाद से मुक्त कराना है।
कार्बी आंगलोंग के क्षेत्र में और भी प्रमुख जनजाति दिमासा, बोडो ,कुकी हमार तिवा रहते हैं।
फरवरी 2021 में करीब एक हजार उग्रवादी और पूर्वोत्तर के सबसे मोस्ट वांटेड उग्रवादी सोंगबजीत ने आत्मसमर्पण किया था और अभी आत्म समर्पित किए गए लोगों के पास से भारी मात्रा में हथियार ,एके-47, ग्रेनेड ,रॉकेट लॉन्चर, लाइट मशीन गन बरामद किए गए।
शंका जताई जाती है ,इन हथियारों को म्यांमार के रास्ते से चीन भारत में पहुंचा रहा है। जो कि भारत के लिए एक बहुत ही बड़ी चिंता का विषय है। केंद्र सरकार एवं स्थानीय सरकार को इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना चाहिए नहीं तो विरोधी देश हमारे ही लोगों के माध्यम से हमारे देश में हिंसा को भड़काता रहेंगे।
सरकार एवं लोगों से यही उम्मीद है कि दोनों पक्ष अपने समझौता पर अटल रहे और पूर्वोत्तर एवं असम के क्षेत्र में शांति कायम रहे।